IAS बनने का सपना टूटा पर मेहनत से संवारा अपना भविष्य, अब मनोज कमाते हैं सालाना 6 लाख रुपए




दोस्तों, हम सभी अपने जीवन में कुछ ना कुछ बनना चाहते हैं। कई सपने देखते हैं कि पढ़ लिखकर ये बनेंगे, परन्तु उनमें से कुछ ख़्वाब पूरे होते हैं और कुछ ख़्वाहिश बनकर दिल में ही रह जाते हैं। हाँ, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं है कि अगर हमने जो सोंचा था, वह बन नहीं पाए तो हम कुछ कर नहीं पाएंगे। कई बार रास्ते बदलकर भी देख लेना चाहिए, आप भी सफल हो सकते हैं।




कुछ ऐसा ही हुआ मनोज आर्य (Manoj Arya) के साथ। जो IAS ऑफिसर बनना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने दिल्ली में तैयारी भी की थी, लेकिन असफ़लता ही हाथ लगी। फिर इन्होंने कई काम किए, राजनीति में भी रहे, लेकिन मन नहीं माना और फिर अब वे किसान बनकर ख़ुशी से ज़िन्दगी बिता रहे हैं। ऑर्गेनिक गुड़ बनाकर बेचते हैं और सालाना 6 लाख रुपए कमा लेते हैं।




दिल्ली में रहकर की UPSC परीक्षा की तैयारी, पर असफल रहे
मनोज आर्य (Manoj Arya) यूपी के बागपत जिले से लगभग 15 किमी दूर स्थित ढिकाना गाँव के निवासी हैं। वे बताते हैं कि उन्होंने शुरुआत से ही IAS बनने का सपना देखा था। इसलिए वर्ष 1994-95 में जब इनकी पढ़ाई पूरी हुई तो उसके पश्चात उन्होंने दिल्ली जाकर यूपीएससी परीक्षा (UPSC Exam) की तैयारी शुरू कर दी थी। कई वर्ष दिल्ली में रहकर तैयारी की लेकिन फिर भी उन्हें सफलता नहीं मिली। फिर उन्होंने IAS बनने के बारे में छोड़ दिया और राजनीति तथा सामाजिक कार्यों में दिलचस्पी लेने लगे।




अरविंद केजरीवाल के साथ काम किया
फिर वर्ष 2006 में उन्होंने अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की टीम के साथ काम किया। अरविंद केजरीवाल जी के साथ मनोज ने बहुत से आंदोलन भी किए। इसके बाद वे RTI के मेम्बर बने। उन्होंने बताया कि वे अन्ना आंदोलन से भी जुड़े थे। जिस समय आम आदमी पार्टी का गठन हुआ था, तो उसके साथ भी काम किया। आम आदमी पार्टी में बहुत से पदों पर रहने के बाद भी जब राजनीति में उनका मन नहीं माना, तो फिर वर्ष 2016 में वे राजनीति को अलविदा कहकर निकल गए। अब उनके जीवन का कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं था, जिस काम से उन्हें सन्तुष्टि मिले।




फिर…खेती करने का शौक हुआ
मनोज ने बताया कि उनके पिताजी सेवानिवृत्त प्रिंसिपल हैं। उनके एक भाई दिल्ली में लेक्चरर हैं और दूसरे बागपत के बड़ौत में एक स्कूल में प्रिंसिपल के तौर पर काम कर रहे हैं। इस प्रकार से उनके परिवार में सभी एजुकेशन डिपार्टमेंट से ही जुड़े हुए हैं। परिवार में कोई भी खेती-बाड़ी नहीं जानता था और ना ही दूर-दूर तक खेती बाड़ी से कोई सम्बंध था। पहले तो उन्हें भी खेती में किसी प्रकार की रुचि नहीं थी, पर फिर एक बार उनके एक मित्र ने जब उन्हें किसानों के एक वाट्सऐप ग्रुप से जोड़ा, तो तभी से उन्हें खेती करने का शौक हुआ।




अरविंद केजरीवाल के साथ काम किया
फिर वर्ष 2006 में उन्होंने अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की टीम के साथ काम किया। अरविंद केजरीवाल जी के साथ मनोज ने बहुत से आंदोलन भी किए। इसके बाद वे RTI के मेम्बर बने। उन्होंने बताया कि वे अन्ना आंदोलन से भी जुड़े थे। जिस समय आम आदमी पार्टी का गठन हुआ था, तो उसके साथ भी काम किया। आम आदमी पार्टी में बहुत से पदों पर रहने के बाद भी जब राजनीति में उनका मन नहीं माना, तो फिर वर्ष 2016 में वे राजनीति को अलविदा कहकर निकल गए। अब उनके जीवन का कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं था, जिस काम से उन्हें सन्तुष्टि मिले।




फिर…खेती करने का शौक हुआ
मनोज ने बताया कि उनके पिताजी सेवानिवृत्त प्रिंसिपल हैं। उनके एक भाई दिल्ली में लेक्चरर हैं और दूसरे बागपत के बड़ौत में एक स्कूल में प्रिंसिपल के तौर पर काम कर रहे हैं। इस प्रकार से उनके परिवार में सभी एजुकेशन डिपार्टमेंट से ही जुड़े हुए हैं। परिवार में कोई भी खेती-बाड़ी नहीं जानता था और ना ही दूर-दूर तक खेती बाड़ी से कोई सम्बंध था। पहले तो उन्हें भी खेती में किसी प्रकार की रुचि नहीं थी, पर फिर एक बार उनके एक मित्र ने जब उन्हें किसानों के एक वाट्सऐप ग्रुप से जोड़ा, तो तभी से उन्हें खेती करने का शौक हुआ।




मनोज का कहना है कि ज़िन्दगी कब नई राहों पर चल पड़े, कोई नहीं जानता है। उनके वाट्सऐप ग्रुप पर खेती बाड़ी से जुड़े वीडियो और नई-नई जानकारियाँ आती थीं। जिन्हें देखकर मनोज की खेती में रुचि बढ़ गई। फिर उन्होंने खेती करने के तरीके सीखे और गन्ना उगाया। हालांकि प्रारंभ में जब उन्होंने गन्ने की फ़सल लगाई तो उन्हें बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। उन्होंने बहुत-सी चीनी मिलों के चक्कर भी काटे, परंतु फिर उन्हें गुड़ बनाकर बेचने का सही रास्ता मिला। मनोज कहते हैं कि उन्होंने ज़िन्दगी में बहुत कुछ करके देखा लेकिन अब वे केवल खेती करके ही बहुत खुश हैं।




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