जीरा उन मसालों में शामिल है जिसका इस्तेमाल कई रूपों में होता है. जीरा अगर सब्जी या अन्य वेज-नॉनवेज डिश में न पड़े तो स्वाद फीका सा लगता है. यही नहीं, जीरे को भुनकर छाछ, दही, लस्सी में मिलाकर खाया जाता है. इससे टेस्ट और बढ़ जाता है.
जीरे से स्वाद तो बढ़ता ही है, यह स्वास्थ्य के लिए भी उत्तम माना जाता है. कमाई के लिहाज से भी जीरा काफी लाभदायक है. अगर जीरे की उन्नत किस्मों की बुआई की जाए तो किसान लाखों में कमाई कर सकते हैं. आइए जानते हैं कि जीरे की खेती के बारे में.
जीरे की खेती के लिए हल्की और दोमट उपजाऊ भूमि अच्छी रहती है. ऐसी मिट्टी में जीरे की खेती आसानी से की जा सकती है. बुआई से पहले यह जरूरी है कि खेत की तैयारी ठीक ढंग से की जाए. इसके लिए खेत को अच्छी तरह जोतकर उसे अच्छी तरह भुरभुरी बना लेनी चाहिए. जिस खेत में जीरे की बुआई करनी है, उस खेत से खेर-पतवार निकाल कर उसे साफ कर लेना चाहिए.
यदि पिछली खरीफ की फसल में 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद डाली जा चुकी है तो जीरे की फसल में अतिरिक्त खाद देने की जरूरत नहीं होती. अगर ऐसा नहीं किया गया है तो प्रति हेक्टेयर 10-15 टन गोबर की खाद का प्रयोग खेत में करना चाहिए. गोबर की खाद को खेत में ठीक ढंग से मिला देना चाहिए.
जीरे की उन्नत किस्में
जीरे की उन्नत किस्मों में तीन वेरायटी का नाम प्रमुख है. आरजेड 19 और 209, आरजेड 223 और जीसी 1-2-3 की किस्मों को उन्नत माना जाता है. इन किस्मों की पकने की अवधि 120-125 दिन है. इन किस्मों की औसतन उपज प्रति हेक्टेयर 510 से 530 किलो ग्राम है. किसान इनमें से किसी एक किस्म का चयन कर बुआई कर सकते हैं और अच्छी कमाई कर सकते हैं.
कब करें बुआई
बुआई की जहां तक बात है तो जीरे की बुआई 15 से 30 नवंबर के बीच कर देनी चाहिए. 1 हेक्टेयर खेत के लिए 12-15 किलो बीज पर्याप्त है. बुआई से पहले बीज का उपचार करना जरूरी होता है ताकि उपज अच्छी मिले और बीज खराब न हो. उपचार के लिए प्रति किलो बीज में 2 ग्राम कार्वन्डाजिम दवा मिला देनी चाहिए. बीज के उपचार के लिए 4 ग्राम ट्राइकोडरमाबेडी भी मिला सकते हैं. जीरे की बुआई आमतौर पर छिड़काव की विधि से की जाती है. यानी कि जीरे को खेत में छिड़क कर बोया जाता है.
कैसे करें खेती
इसकी अच्छी विधि यह है कि खेतों में पहले क्यारी बना लें फिर उसमें बीज का छिड़काव कर दें. बीज छिड़काव के बाद लोहे की दंताली से बीजों को मिट्टी से मिला दें ताकि बीजों पर मिट्टी की हल्की परत चढ़ जाए. ध्यान रखें कि बीच जमीन में ज्यादा गहरा नहीं जा पाए. हालांकि कुछ मायनों में छिड़काव विधि से ज्यादा क्यारी बना कर कतार में जीरे की बुआई को अधिक उपयुक्त माना गया है.
कतार में बुआई के लिए क्यारियों में 30 सेंटीमीटर की दूरी पर लोह या लकड़ी से लकीर खींच दें. बीजों को इन कतारों पर डालकर दंताली चला देनी चाहिए. बुआई के वक्त यह ध्यान रखें कि बीज मिट्टी से ठीक से ढंक जाए. मिट्टी की परत एक सेंटीमीटर से ज्यादा मोटी नहीं होनी चाहिए.
क्या डालें उर्वरक
अब बात खाद और उर्वरकों की. जीरे की फसल को 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलो स्फुर और 10 से 15 टन गोबर की खाद की जरूरत होती है. यह मात्रा प्रति 1 हेक्टेयर के लिए है. बुआई से पूर्व भूमि में फास्फोरस की पूरी मात्रा मिला देनी चाहिए. नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुआई से 30-35 दिन बाद और शेष मात्रा बुआई के 60 दिन बाद सिंचाई के बाद खेत में डाली जानी चाहिए.
कब करें सिंचाई
जीरे की फसल की सिंचाई की जहां तक बात है तो पहली सिंचाई बुआई के ठीक बाद कर देनी चाहिए. दूसरी सिंचाई बुआई के 7 दिन बाद और तीसरी सिंचाई 15-25 दिन पर करनी चाहिए. सिंचाई के समय ध्यान रखें कि पानी का बहाव तेज न हो. तेज बहाव से बीज के इधर-उधर छिटकने का खतरा होता है. दूसरी सिंचाई के बाद बीच का अंकुरण न हुआ हो या जमीन पर पपड़ी पड़ गई हो तो एक हल्की सिंचाई और कर देनी चाहिए. पकती हुई फसल में सिंचाई नहीं करना चाहिए.
जीसे से कमाई
देश का 80 प्रतिशत से अधिक जीरा गुजरात और राजस्थान में उगाया जाता है. राजस्थान में देश के कुल उत्पादन का लगभग 28 प्रतिशत जीरे का उत्पादन होता है. अब बात करें उपज और इससे कमाई की तो जीरे की औसत उपज 7-8 क्विंटल बीज प्रति हेक्टयर प्राप्त हो जाती है. जीरे की खेती में लगभग 30 से 35 हजार रुपये प्रति हेक्टयर का खर्च आता है. अगर जीरे की कीमत 100 रुपये प्रति किलो भाव मान कर चलें तो 40 से 45 हजार रुपये प्रति हेक्टयर का शुद्ध लाभ मिल सकता है. ऐसे में अगर 5 एकड़ की खेती में जीरा उगाया जाए तो 2 से सवा दो लाख रुपये की कमाई की जा सकती है.
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